सच कहूँ,
महिला दिवस अब बेमानी लगता है।
तीन दिन पहले ही, महिला दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित था महिला कवि सम्मेलन।
सारी विदुषी कवयित्रियों का मधुर मिलन ।
एक कवयित्री कविता पढ़ रही थी, पीछे कुछ विदुषियाँ फुसफुसाकर उस पर फब्तियाँ कस रही थीं
"क्या कविता है,बकवास है एकदम। तुझे कुछ समझ में आई ?"
जवाब में दबी दबी सी हँसी के फव्वारे छूटे।
पर मंच से नीचे आते ही "वाह ! वाह !", "जबर्दस्त !" के बताशे बिखरने लगे।
झूठी कहीं की !!!
मंच पर बोलेंगी - "मैं सावित्री, मैं द्रौपदी, मैं सीता,
मुझ पर क्या क्या नहीं बीता ?"
और पीठ पीछे अपनी ही सखियों का चीरहरण करने में कसर ना छोड़ेंगी।
आज दोपहर मेरी कामवाली बाई (maid) वनिता कुछ देर से आई।
वही maid, जिसके एक दिन ना आने से हम सारी self made वीरांगनाओं की टें बोल जाती है।
मैंने कहा, "वनिता, आज काम नहीं है, आज तुमको छुट्टी। "
वनिता का चेहरा पहले खिला, फिर मुरझाया।
"क्या हुआ, छुट्टी मिलने की खुशी नहीं हुई तुझे ?"
"आपने तो छुट्टी दिया दीदी पर नीचे वाली मैडम के घर डबल काम है आज, वो क्या बोलते उसको ? लेडीज लोग का कोई सण (त्योहार ) है ना दीदी ? तो पार्टी है उसके घर।"
त्योहार लेडीज लोग का है ना, तो कुछ लेडीज का दूसरी लेडीज से डबल काम कराना तो बनता है !!!
वाह रे महिला दिवस !!!
फिर हुई शाम। पतिदेव पधारे। सुबह सुबह ही HAPPY WOMEN'S DAY का संदेश भेजकर मुझे मेरी जाति का बोध करानेवालों में वे भी एक हैं।
काम के बोझ से उनका मूड कुछ ऑफ था। उसका थोड़ा प्रसाद तो मुझे मिलना ही था। मैं उनकी अर्धांगिनी जो ठहरी।
(अर्धांगिनी का पुल्लिंग शब्द कहीं प्रयोग होते हुए किसी ने सुना हो तो बताएँ। मैंने नहीं सुना आज तक।)
ऐसे मौकों पर रानी लक्ष्मीबाई, कल्पना चावला, इंदिरा गांधी, किरण बेदी, बछेंद्री पाल आदि की स्मृतियाँ भी मुझमें वीरांगना वाला भाव नहीं भर पाती हैं । तो हमेशा की तरह आज भी अपने स्वाभिमान के गांडीव को ताक पर रखकर मैंने महान धनुर्धर अर्जुन का स्मरण किया और सोचा, "छोड़ो, अपनों से क्या लड़ना।"
कृष्ण मेरे घर के मंदिर में बैठे मंद मंद मुस्कुरा रहे थे, उन्होंने मुझे गांडीव उठाने को कहने का रिस्क नहीं लिया।
HAPPY WOMEN'S DAY
और भी बहुत से किस्से हैं महिला दिवस के, पर अभी ज्यादा लिखने का मूड नहीं है।
Wah!
जवाब देंहटाएंसूपर से भी ऊपर।
बहुत बढिया प्रस्तुति।
सुन्दर लेखन
जवाब देंहटाएंवाह ! रोचक आलेख
जवाब देंहटाएंमीना दी,महिला दिवस का वास्तविक चित्रण किया है आपने।
जवाब देंहटाएंवाह!!!
जवाब देंहटाएंक्या बात...
अपनों से क्या लड़ना... स्वयं श्रीकृष्ण रिस्क न ले पाये जिस नारी से...नहीं दे पाये ज्ञान उसे अर्जुन सा ...जानते हैं किसी ज्ञान की कमी नहीं ये नारी है स्वयं सिद्धि है
फिर नारी अबला लाचार कहाँ...हर दिन उसका है वह किसी दिन की मोहताज नहीं।
लाजवाब एवं सराहना से परे
🙏🙏🙏🙏
महिला दिवस का
जवाब देंहटाएंसार्थक और सटीक चित्रण
बस मुस्कुरा कर रह गयी
जवाब देंहटाएंघर-घर की किस्सा कह गयी
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार ११ मार्च २०२२ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
कुछ अपनी कुछ सबकी बातें..
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़ियाँ मीना जी..
एकदम चकाचक आईना दिखाया है जो कुछ ज्यादा ही सुन्दरता को फोटोशॉप कर रहा है। मुस्कान अधर में ही फँस गई है। वैसे अर्धांग का प्रयोग अर्धांगिनी (याँ) ही नहीं करती हैं...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर…,सच में महिला दिवस अधिकांश स्थानों पर इसी परिपाटी से मनाया जाता है ।
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