शुक्रवार, 30 जून 2023

अखेरचे येतील माझ्या : हिंदी अनुवाद

मेरे प्रिय कवि मंगेश पाडगावकर जी की एक सुंदर मराठी कविता का हिंदी अनुवाद प्रस्तुत है। आप इस सुमधुर भावगीत को यहाँ सुन सकते हैं।
https://youtu.be/eX3REkPo15g

अखेरचे येतील माझ्या हेच शब्द ओठी !
लाख चुका असतील केल्या, केली पण प्रीती !

जीवन के अंतिम क्षणों में मेरे होठों पर यही शब्द होंगे - "लाख हुईं भूलें मुझसे, पर तुमसे प्रेम किया है मैंने !"

इथे सुरु होण्याआधी, संपते कहाणी,
साक्षीला केवळ उरते, डोळ्यांतील पाणी !
जखम उरी होते ज्यांच्या, तेच गीत गाती...

यहाँ हर कहानी शुरू होने से पहले ही खत्म हो जाती है। केवल नयनों का पानी ही उस कहानी का गवाह बनकर रह जाता है। ये प्रेमगीत वही गा सकते हैं जिनके हृदय में जख्म हुए हैं !

सर्व बंध तोडूनी जेव्हा नदी धुंद धावे,
मीलन वा मरण पुढे, हे तिला नसे ठावे !
एकदाच आभाळाला अशी भिडे माती...

हर बंधन को तोड़ती हुई, जब बेसब्र नदी सागर से मिलने दौड़ती है, वह नहीं जानती कि ये मिलन पथ है या मृत्यु पथ है । अपने प्रिय को प्राप्त करने का यह प्रयत्न बिल्कुल वैसा ही है जैसा माटी द्वारा आकाश को छूने का प्रयत्न !!!

गंध दूर ज्याचा, आणिक जवळ मात्र काटे
असे फुल प्रीती म्हणजे कधी हाय वाटे !
तरी गंध धुंडीत धावे जीव तुझ्यासाठी....

हाय ! कभी कभी मुझे ऐसा लगता है कि प्रेम ऐसा फूल है जिसकी सुगंध मुझसे बहुत बहुत दूर, मेरी पहुँच के बाहर है। केवल काँटे मात्र ही मेरी पहुँच में हैं, मेरे पास हैं। फिर भी मेरे ये प्राण तुम्हारे लिए, उस अप्राप्य सुगंध की खोज में भटकते हैं। 

आर्त गीत आले जर हे कधी तुझ्या कानी,
गूज अंतरीचे कथिले तुला ह्या स्वरांनी,
डोळ्यांतून माझ्यासाठी लाव दोन ज्योती !

अखेरचे येतील माझ्या हेच शब्द ओठी,
लाख चुका असतील केल्या, केली पण प्रीती !

अगर कभी तुम्हारे कानों में ये मेरे आर्त गीत पड़ जाएँ और मेरे अंतर्मन में छुपे भाव इन स्वरों के द्वारा तुम तक पहुँच जाएँ तब तुम अपने नयनों के दो दीप मेरे लिए जला देना। (नयनों से दो अश्रूबिंदु मेरे लिए बहा देना) अंतिम क्षणों में मेरे होठों पर यही शब्द होंगे - "लाख हुईं भूलें मुझसे, पर तुमसे प्रेम किया है मैंने !"

सोमवार, 19 जून 2023

घर ( भाग १ )

 6 वर्ष पहले गीता की आर्थिक स्थिति इतनी खराब नहीं थी जितनी आज हो गई है। हालांकि घर के दो टुकड़े हो चुके थे। आगे वाला हिस्सा देवर को मिला था और पीछे का हिस्सा उन्हें, जो एक सँकरी गली में खुलता था। इस गली में बहुत पिछड़े वर्ग के, असभ्य तरीके के लोग रहते थे। हालांकि उन लोगों ने प्रत्यक्ष रूप से गीता को कभी परेशान नहीं किया था पर उनमें आपस में छोटी छोटी बातों पर काफी झगड़े होते और वे भद्दी भाषा और गालियों का प्रयोग करते थे। गीता एक साधारण सी कंपनी में क्लर्क थी, उसका वेतन अधिक नहीं था। पति भी प्राइवेट फर्म में काम करते थे। दोनों कमाते थे और दोनों की तनख्वाह मिलाकर कुल इतनी तो थी ही कि अच्छा खा पहनकर जिंदगी आराम से कट रही थी। हाँ, बचत के नाम पर कुल हजार दो हजार प्रति महीना ही था। इकलौती बेटी कान्वेंट में पढ़ रही थी, उसकी पढ़ाई पर भी अच्छा खासा खर्च होता था।

 गीता के पति रमेश अपने जीवन से पूर्ण संतुष्ट थे परंतु गीता इस गलीवाले घर में रहने को लेकर खुश नहीं थी। वह अक्सर रमेश से कहती -
"इस मोहल्ले को सारे अच्छे अच्छे लोग छोड़ते चले जा रहे हैं। इस गली के लोगों की असभ्य भाषा सुनकर तो कानों के कीड़े झड़ जाएँ। बेटी भी बड़ी हो रही है। हम कहीं और क्यों नहीं चले जाते रहने ? आप तो हाथ पर हाथ धरे बैठे हो। इस घर में अपनी सहेलियों को बुलाने में भी डर लगता है। ना जाने कब पड़ोसी शराब पीकर आ जाए और पत्नी को मारना पीटना और गंदी गालियाँ बकना शुरू कर दे। ऐसे में शर्मिंदा तो मुझे ही होना पड़ता है।"
रमेश निर्विकार भाव से उत्तर देते -
"फ्लैट खरीदना मेरे बस का नहीं है और अपने घर को छोड़कर किराए पर जाने में मुझे कोई तुक नजर नहीं आती।"
आए दिन इस विषय को लेकर दोनों में वाद विवाद होता और अब तो किशोर वय में पदार्पण करती मोना भी वहाँ रहने के खिलाफ थी।
तभी एक दिन गीता की चाची का फोन आया -
"सुन, हमारी बिल्डिंग के सामने ही नया कॉम्प्लेक्स बन रहा है। तू वहाँ फ्लैट का नंबर लगा दे। मौका मत छोड़। रमेश को मैं समझाऊँगी। हाइवे इस कांप्लेक्स के सामने से बनने वाली है। दस साल में दुगुने दाम हो जाएँगे इस जगह के।"
बात गीता के दिमाग में बैठ गई। उसने रो पीटकर रमेश को भी मना लिया। सारा हिसाब समझाते हुए कहा -
"देखिए, माना कि हमारे पास बचत कुछ भी नहीं है। पर 90 % तक लोन मिल जाएगा। फिर जैसे ही फ्लैट तैयार हो जाता है, हम वहाँ शिफ्ट हो जाएँगे और इस घर को बेच देंगे। इसके दाम ज्यादा नहीं मिलेंगे पर आधा कर्ज तो उतर ही जाएगा इसे बेचने से।"
आखिर रमेश ने बात मान ली।
गीता ने ही सब कुछ किया। लोन पास कराने से लेकर निर्माणाधीन कांप्लेक्स का काम देख देखकर आती, अपनी जरूरतों के मुताबिक फ्लैट में कुछ बदलाव कराती। बिल्डर ने दो वर्ष में प्लैट का ताबा देने का वादा किया था।
 ( शेष अगले भाग में )

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