शनिवार, 22 फ़रवरी 2020

तीन दिन की छुट्टी

रिया की तीन दिन की छुट्टी है। महाशिवरात्री, चौथा शनिवार, रविवार। रिया सोच रही है कि इस वीकएंड अच्छे से आराम करेगी और कहीं आसपास घूमने भी जाएगी। 
       हर रोज तो सुबह सात बजे स्कूल के लिए निकलना होता है। बेटे और पति का लंचबॉक्स, दूध गरम करना, चाय बनाना, पौधों को पानी देना, सुबह के अपने रोजमर्रा के काम करना इन सबके लिए सुबह पाँच बजे उठो तो भी उसे वक्त कम पड़ता है। फिर छोटे-छोटे कामों की तो गिनती ही नहीं जैसे अपनी पानी की बोतल, चाय का थर्मस, नाश्ते का टिफिन तैयार करना, पूजा करना आदि। माँ कहती है कि सुबह की झाड़ू लगाए बिना घर से निकलना अच्छा नहीं होता। वनिता यानि कि कामवाली तो दोपहर तीन बजे आती है, तब तक झाड़ू भी ना लगाना,जूठे बर्तन रखे रहना रिया को भी पसंद नहीं है। माँ ने संस्कार तो घुट्टी में घोलकर पिला दिए, काश ! थोड़ा ये भी सिखा दिया होता कि अपना भी ख्याल रखा करे।
    हाँ, तो रिया की तीन दिन की छुट्टी है। 
अरे ! बात अधूरी रह गई। छुट्टी का नाम सुनते ही मन बल्लियों उछलने लगा , क्यों ? अजी, अभी दिनचर्या पूरी नहीं हुई। दोपहर दो बजे रिया स्कूल से लौटती है तो अकेली नहीं, होमवर्क साथ लेकर। साप्ताहिक, मासिक, वार्षिक, अर्धवार्षिक परीक्षाएँ, दसवीं के बच्चों की दो बार पूर्वतैयारी की परीक्षाएँ होती हैं, सो पेपर्स जाँचने के लिए घर पर लाने पड़ते हैं। कभी कापियाँ भी घर लानी होती हैं जाँचने के लिए। कभी फीस का हिसाब लिखना होता है। कभी कोई रिपोर्ट बनानी है। कभी कुछ तो कभी कुछ काम लगा ही रहता है। अगले दिन के पाठ की पूर्वतैयारी करनी होती है। दोपहर में खाना खाकर कभी थोड़ा सो लेती है, कभी नहीं। शाम पाँच बजे से कभी सात तो कभी आठ बजे तक उसके कोचिंग क्लास का वक्त है। घर की आर्थिक स्थिति को सँभालने के लिए यह अतिरिक्त काम करना उसकी मजबूरी है। वहाँ से लौटकर एक चाय, शाम की पूजा, रात का खाना पकाना....
लो जी, हो गया दिन खत्म ! रात के दस बजे याद आता है कि स्कूल या क्लासेस का कुछ जरूरी काम रह गया है। अंततः रात के ग्यारह से बारह के बीच वह पूरी तरह निढाल होकर बिस्तर पर पड़ जाती है, बेजान सी !
  और आज वह खुश है क्योंकि पिछले तीन महीनों से लगातार उत्तरपत्रिकाएँ जाँचने के बाद, स्कूल के दसियों कार्यक्रमों का अतिरिक्त कार्यभार पूरा होने के बाद, मायके और ससुराल की कई जिम्मेदारियों से लगातार जूझने और उन्हें सफलतापूर्वक निपटाने के बाद ये तीन दिन की छुट्टी आ रही है। रिया अपनी सहेली वर्षा के साथ बतियाते स्टाफ रूम से निकल ही रही है कि चपरासी आता है। 
"रिया मैम, छुट्टी में प्रिंसिपल ने बुलाया है।"
"ठीक" रिया के मन में संदेह का कीड़ा कुलबुलाने लगता है। क्या पिछली छुट्टी की तरह ये भी..... 
" आइए रिया, ये पुस्तकें हैं कक्षा सातवीं से नौवीं की। साथ में सिलेबस भी है वार्षिक परीक्षा का। आप हिंदी और मराठी के पेपर्स सेट कर दीजिए। तीन दिन छुट्टी भी है तो आप आराम से करके सोमवार को दे पाएँगी।"
 आ गया ना हलुवे में कंकड़ !!! रिया जानती थी प्रिंसिपल इन तीन छुट्टियों में कोई काम ना दे ऐसा हो ही नहीं सकता।
वह चुपचाप पुस्तकें उठा लेती है और बाहर निकल आती है।
रात में क्लास से मैसेज आया है। 
"रिया मैम, क्लासेस के दस बारह टॉपर्स ने हिंदी और मराठी के तीन तीन पेपर्स हल कर रखे हैं। आप जाँचकर सोमवार को दे दें। अब कल से तीन दिन क्लास भी बंद है।" 
बच्चों का पहला पेपर मराठी है चार मार्च को, सालभर उन्हें पढ़ाया है। उनके पेपर्स समय पर नहीं जाँचकर दिए गए तो उनके उत्साह पर पानी फिर जाएगा। 
"ठीक है सर। कल सुबह घर पर भिजवा दीजिए।" रिया मैसेज का उत्तर दे देती है।
     तीन दिन रिया की छुट्टी है। पति भी घर पर हैं। रोज की अपेक्षा कुछ अच्छा तो पकाना चाहिए। जेठजी की तबीयत सीरियस हो रही है, उन्हें भी मिल आना होगा। तभी सहेली का फोन आता है - " इस वीकएंड मिलते हैं क्या, जून से नहीं मिले। मौसम भी सुहाना है।" रिया असमर्थता जताती है। 
ननद का फोन है। बेटी की शादी अच्छी जगह हो जाने से फूली नहीं समा रही हैं। बेटी मुंबई में ही ब्याही गई है। 
"सुन, मैं और तेरे जीजाजी रोशनी को लेने आ रहे हैं 22 को, सुबह तेरे घर आकर शाम को बेटी के पास चले जाएँगे।"
नकली प्रसन्नता जताते हुए रिया फोन रख देती है। तीन दिन की छुट्टी है। 
   तभी कुछ और याद आता है।  कुछ काम और भी हैं। दो अधूरी लिखी कहानियों को पूरा करना है। एक मित्र ने अपनी कुछ रचनाओं को पढ़कर क्रम से लगा देने को कहा है। ना हो पाने पर वे क्या सोचेंगे? माँ की तबीयत भी ठीक नहीं है, उनसे मिलने लगभग हर रोज ही जाना होता है।
प्यारी माँ ! कुछ भी हो, मैं आऊँगी कल भी। माँ की वृद्धावस्था,अकेलेपन और मजबूरियों का अहसास समेटते हुए रिया आँखें बंद कर लेती है। पापा को याद करके दो बूँदें आँखों से ढुलक पड़ती हैं....
  रात को सोने से पहले रिया टाइम मैनेजमेंट करने पर विचार कर रही है। तीन दिन की समय सारिणी बना ली। घूमना, सुबह देर तक सोना, बगीचे के पौधों को समय देना, समाजसेवी संस्था में जाना कैंसिल। बाकी कार्यों को वरीयता श्रेणी के आधार पर ऊपर नीचे करके देख लिया। सबको समय मिल जाएगा। कोई बात नहीं। छुट्टियाँ आगे भी आती रहेंगी।
    समय सारिणी में सब कुछ है। सिर्फ रिया कहीं नहीं है। 

   

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