शुक्रवार, 12 मार्च 2021

एक बवाल ऐसा भी....

रात के ग्यारह बज रहे हैं। मैं हाथ में कापी पेन लिए बेडरूम से बालकनी, बालकनी से बेडरूम के चक्कर लगा रही हूँ। 'वे' मेरी इस 'नाइट वाक' से हैरान परेशान, हथेलियों पर ठुड्डी टिकाए कभी मुझे देखते हैं और कभी घड़ी को। आखिर ना रहा गया तो बोल उठे - 'ये क्या हो रहा है?'

मैं - एक कविता लिखनी है। विषय है - बवाल।
वे - ओह ! तो फिर ?
मैं - कुछ सूझ नहीं रहा...
वे - 'बवाल' विषय पर आप निश्चय ही बहुत बढ़िया लिख सकती हैं। फिर भी, आप चाहें तो ये नाचीज आपकी कुछ मदद कर सकता है । 
मैं - (शक्की नजरों से देखते हुए ) अच्छा ! कीजिए। 
वे - तो लिखिए.....
             "बिना किसी सवाल, 
          मैं झेलूँ रोज एक बवाल !
          आलू छोटे आ गए तो बवाल !
          भिंडी बड़ी आ गई तो बवाल !
          गीला तौलिया बिस्तर पर, छोटा बवाल !
          दफ्तर से फोन ना किया, बड़ा बवाल !.....
मैं - बस ! बस ! ये आप कविता बना रहे हैं या एक नए बवाल की भूमिका ?
वे - डियर, मैं तो बस आपकी मदद.....
मैं - रहने दें आपकी मदद । मैं लिख लूँगी कुछ ना कुछ । पता है, पिछली बार 'अलाव' विषय पर लिखकर भेजा था, तो मेरी रचना पाँचवें नंबर पर आई थी। 
वे - अच्छा ! पर मुझे लगता है कि विषय 'अलाव'के बजाय 'पुलाव' होता तो आप ही पहले नंबर पर होतीं!!!

( मैंने आँखें तरेरकर देखा। उन्होंने मासूम बच्चे की तरह कान पकड़ लिए, ....सॉरी !!! )

वे - एक और आयडिया आया है । आपने वो गाना सुना है ? 'एक सवाल मैं करूँ, एक सवाल तुम करो, हर सवाल का सवाल ही जवाब हो....'
मैं - हाँ । 
वे - बन गई बात ! आप यूँ लिखिए --
        "इक बवाल मैं करूँ
       इक बवाल तुम करो !
       हर बवाल का,
       बवाल ही जवाब हो !"

( मैंने अपना सिर पकड़ लिया । )

मैं - हे भगवान ! आपको तो बताना ही नहीं चाहिए था। आपको साहित्य और कविता की कोई कद्र ही नहीं है। ना जाने कैसे नीरस इंसान हैं आप.... अजी, बवाल एक गंभीर विषय है। एक से एक संवेदनशील रचनाएँ आ रही हैं इस विषय पर और आप.....
वे - ( रजाई में मुँह घुसाकर ) लो चुप हो गया। वरना फिर से शुरू हो जाएगा एक नया...... 
दोनों साथ - बवाल !!!!
           

28 टिप्‍पणियां:

  1. वाह!! बहुत खूब बवाल मचा, पति-पत्नी की प्यारी नोंक- झोंक,मजा आ गया पढ़कर

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    1. शुक्रिया प्रिय कामिनी। आपको अच्छा लगा, यह जानकर खुशी हुई।

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  2. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार ( 15 -03 -2021 ) को राजनीति वह अँधेरा है जिसे जीभर के आलोचा गया,कोसा गया...काश! कोई दीपक भी जलाता! (चर्चा अंक 4006) पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है।

    चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

    यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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    उत्तर
    1. बहुत बहुत आभार आदरणीय रवींद्रजी। चर्चामंच पर रचना के आने से मुझे बहुत खुशी होगी। कोई आपत्ति नहीं है। धन्यवाद।

      हटाएं
  3. हा हा हा ... बहुत मस्त लिखा है ... वैसे बवाल का भी जवाब नहीं. विषय ज़बरदस्त .

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  4. बहुत सारा स्नेह और धन्यवाद आदरणीया दीदी।

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  5. वाह बहुत बढ़िया, बहुत रोचक ।

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  6. बहुत बढ़िया प्रसंग, मजा आ गया, और आपने सुंदर तरीके से रच दिया..

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  7. वाह! बहुत सुंदर! बहुत ही रोचक

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  8. वाह मजा आ गया, बहुत सुंदर सृजन

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  9. बहुत ही सुंदर बवाल पर सृजन आदरणीया मीना दी।

    "बिना किसी सवाल,
    मैं झेलूँ रोज एक बवाल !
    आलू छोटे आ गए तो बवाल !
    भिंडी बड़ी आ गई तो बवाल !
    गीला तौलिया बिस्तर पर, छोटा बवाल !
    दफ्तर से फोन ना किया, बड़ा बवाल !.....वाह!👌

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  10. वाह!! बवाल के चक्कर में मचा यहाँ बवाल...बेहतरीन...

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  11. अच्छी रही नोंक-झोंक ,देखिये आपसे कुछ लिखा गई,और एकदम मज़ेदार मौलिक!

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  12. हंसा देने वाली रचना लिख डाली मीना जी आपने तो । बहुत अच्छी लगी । सभी सुखी दंपती ऐसे ही नोक-झोंक करते हैं ।

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  13. प्रेमिल पारी पत्नी में नोक झोंक होना लाजिमी है
    इसके बिना सब अधूरा
    भीतर तक गुदगुदाने के अहसास से परिचित कराती
    शानदार रचना

    शुभकामनाएं

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  14. बहुत ही प्यारी नोक झोंक, मीना दी।

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  15. पति पत्नी के नोंक झोंक को हास्य की थाली में सकती बहुत अच्छी रचना , जय श्री राधे

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  16. वाकई बहुत ही बेहतरीन है और मजेदार भी। पढ़कर मन प्रसन्न हो गया।
    और हाँ सच है जब भी कोई नये विषय पर लिखना होता है तो ऐसी ही बेचैनी होती है...कमरा से अंदर बाहर का चक्कर लगा रहता है।

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  17. मैं सोच रहा हूँ कि बवाल" कि परिभाषा इतनी मनोरंजक हो सकती है।
    बहुत रमणीय महौल और रचना दोनों ।

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  18. मीना जी, सियासत के अखाड़े में कूद जाइए. वहां दिन-रात बवाल ही होता है.

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