रिया की तीन दिन की छुट्टी है। महाशिवरात्री, चौथा शनिवार, रविवार। रिया सोच रही है कि इस वीकएंड अच्छे से आराम करेगी और कहीं आसपास घूमने भी जाएगी।
हर रोज तो सुबह सात बजे स्कूल के लिए निकलना होता है। बेटे और पति का लंचबॉक्स, दूध गरम करना, चाय बनाना, पौधों को पानी देना, सुबह के अपने रोजमर्रा के काम करना इन सबके लिए सुबह पाँच बजे उठो तो भी उसे वक्त कम पड़ता है। फिर छोटे-छोटे कामों की तो गिनती ही नहीं जैसे अपनी पानी की बोतल, चाय का थर्मस, नाश्ते का टिफिन तैयार करना, पूजा करना आदि। माँ कहती है कि सुबह की झाड़ू लगाए बिना घर से निकलना अच्छा नहीं होता। वनिता यानि कि कामवाली तो दोपहर तीन बजे आती है, तब तक झाड़ू भी ना लगाना,जूठे बर्तन रखे रहना रिया को भी पसंद नहीं है। माँ ने संस्कार तो घुट्टी में घोलकर पिला दिए, काश ! थोड़ा ये भी सिखा दिया होता कि अपना भी ख्याल रखा करे।
हर रोज तो सुबह सात बजे स्कूल के लिए निकलना होता है। बेटे और पति का लंचबॉक्स, दूध गरम करना, चाय बनाना, पौधों को पानी देना, सुबह के अपने रोजमर्रा के काम करना इन सबके लिए सुबह पाँच बजे उठो तो भी उसे वक्त कम पड़ता है। फिर छोटे-छोटे कामों की तो गिनती ही नहीं जैसे अपनी पानी की बोतल, चाय का थर्मस, नाश्ते का टिफिन तैयार करना, पूजा करना आदि। माँ कहती है कि सुबह की झाड़ू लगाए बिना घर से निकलना अच्छा नहीं होता। वनिता यानि कि कामवाली तो दोपहर तीन बजे आती है, तब तक झाड़ू भी ना लगाना,जूठे बर्तन रखे रहना रिया को भी पसंद नहीं है। माँ ने संस्कार तो घुट्टी में घोलकर पिला दिए, काश ! थोड़ा ये भी सिखा दिया होता कि अपना भी ख्याल रखा करे।
हाँ, तो रिया की तीन दिन की छुट्टी है।
अरे ! बात अधूरी रह गई। छुट्टी का नाम सुनते ही मन बल्लियों उछलने लगा , क्यों ? अजी, अभी दिनचर्या पूरी नहीं हुई। दोपहर दो बजे रिया स्कूल से लौटती है तो अकेली नहीं, होमवर्क साथ लेकर। साप्ताहिक, मासिक, वार्षिक, अर्धवार्षिक परीक्षाएँ, दसवीं के बच्चों की दो बार पूर्वतैयारी की परीक्षाएँ होती हैं, सो पेपर्स जाँचने के लिए घर पर लाने पड़ते हैं। कभी कापियाँ भी घर लानी होती हैं जाँचने के लिए। कभी फीस का हिसाब लिखना होता है। कभी कोई रिपोर्ट बनानी है। कभी कुछ तो कभी कुछ काम लगा ही रहता है। अगले दिन के पाठ की पूर्वतैयारी करनी होती है। दोपहर में खाना खाकर कभी थोड़ा सो लेती है, कभी नहीं। शाम पाँच बजे से कभी सात तो कभी आठ बजे तक उसके कोचिंग क्लास का वक्त है। घर की आर्थिक स्थिति को सँभालने के लिए यह अतिरिक्त काम करना उसकी मजबूरी है। वहाँ से लौटकर एक चाय, शाम की पूजा, रात का खाना पकाना....
लो जी, हो गया दिन खत्म ! रात के दस बजे याद आता है कि स्कूल या क्लासेस का कुछ जरूरी काम रह गया है। अंततः रात के ग्यारह से बारह के बीच वह पूरी तरह निढाल होकर बिस्तर पर पड़ जाती है, बेजान सी !
और आज वह खुश है क्योंकि पिछले तीन महीनों से लगातार उत्तरपत्रिकाएँ जाँचने के बाद, स्कूल के दसियों कार्यक्रमों का अतिरिक्त कार्यभार पूरा होने के बाद, मायके और ससुराल की कई जिम्मेदारियों से लगातार जूझने और उन्हें सफलतापूर्वक निपटाने के बाद ये तीन दिन की छुट्टी आ रही है। रिया अपनी सहेली वर्षा के साथ बतियाते स्टाफ रूम से निकल ही रही है कि चपरासी आता है।
"रिया मैम, छुट्टी में प्रिंसिपल ने बुलाया है।"
"ठीक" रिया के मन में संदेह का कीड़ा कुलबुलाने लगता है। क्या पिछली छुट्टी की तरह ये भी.....
" आइए रिया, ये पुस्तकें हैं कक्षा सातवीं से नौवीं की। साथ में सिलेबस भी है वार्षिक परीक्षा का। आप हिंदी और मराठी के पेपर्स सेट कर दीजिए। तीन दिन छुट्टी भी है तो आप आराम से करके सोमवार को दे पाएँगी।"
आ गया ना हलुवे में कंकड़ !!! रिया जानती थी प्रिंसिपल इन तीन छुट्टियों में कोई काम ना दे ऐसा हो ही नहीं सकता।
वह चुपचाप पुस्तकें उठा लेती है और बाहर निकल आती है।
रात में क्लास से मैसेज आया है।
"रिया मैम, क्लासेस के दस बारह टॉपर्स ने हिंदी और मराठी के तीन तीन पेपर्स हल कर रखे हैं। आप जाँचकर सोमवार को दे दें। अब कल से तीन दिन क्लास भी बंद है।"
बच्चों का पहला पेपर मराठी है चार मार्च को, सालभर उन्हें पढ़ाया है। उनके पेपर्स समय पर नहीं जाँचकर दिए गए तो उनके उत्साह पर पानी फिर जाएगा।
"ठीक है सर। कल सुबह घर पर भिजवा दीजिए।" रिया मैसेज का उत्तर दे देती है।
तीन दिन रिया की छुट्टी है। पति भी घर पर हैं। रोज की अपेक्षा कुछ अच्छा तो पकाना चाहिए। जेठजी की तबीयत सीरियस हो रही है, उन्हें भी मिल आना होगा। तभी सहेली का फोन आता है - " इस वीकएंड मिलते हैं क्या, जून से नहीं मिले। मौसम भी सुहाना है।" रिया असमर्थता जताती है।
ननद का फोन है। बेटी की शादी अच्छी जगह हो जाने से फूली नहीं समा रही हैं। बेटी मुंबई में ही ब्याही गई है।
"सुन, मैं और तेरे जीजाजी रोशनी को लेने आ रहे हैं 22 को, सुबह तेरे घर आकर शाम को बेटी के पास चले जाएँगे।"
नकली प्रसन्नता जताते हुए रिया फोन रख देती है। तीन दिन की छुट्टी है।
तभी कुछ और याद आता है। कुछ काम और भी हैं। दो अधूरी लिखी कहानियों को पूरा करना है। एक मित्र ने अपनी कुछ रचनाओं को पढ़कर क्रम से लगा देने को कहा है। ना हो पाने पर वे क्या सोचेंगे? माँ की तबीयत भी ठीक नहीं है, उनसे मिलने लगभग हर रोज ही जाना होता है।
प्यारी माँ ! कुछ भी हो, मैं आऊँगी कल भी। माँ की वृद्धावस्था,अकेलेपन और मजबूरियों का अहसास समेटते हुए रिया आँखें बंद कर लेती है। पापा को याद करके दो बूँदें आँखों से ढुलक पड़ती हैं....
तभी कुछ और याद आता है। कुछ काम और भी हैं। दो अधूरी लिखी कहानियों को पूरा करना है। एक मित्र ने अपनी कुछ रचनाओं को पढ़कर क्रम से लगा देने को कहा है। ना हो पाने पर वे क्या सोचेंगे? माँ की तबीयत भी ठीक नहीं है, उनसे मिलने लगभग हर रोज ही जाना होता है।
प्यारी माँ ! कुछ भी हो, मैं आऊँगी कल भी। माँ की वृद्धावस्था,अकेलेपन और मजबूरियों का अहसास समेटते हुए रिया आँखें बंद कर लेती है। पापा को याद करके दो बूँदें आँखों से ढुलक पड़ती हैं....
रात को सोने से पहले रिया टाइम मैनेजमेंट करने पर विचार कर रही है। तीन दिन की समय सारिणी बना ली। घूमना, सुबह देर तक सोना, बगीचे के पौधों को समय देना, समाजसेवी संस्था में जाना कैंसिल। बाकी कार्यों को वरीयता श्रेणी के आधार पर ऊपर नीचे करके देख लिया। सबको समय मिल जाएगा। कोई बात नहीं। छुट्टियाँ आगे भी आती रहेंगी।
समय सारिणी में सब कुछ है। सिर्फ रिया कहीं नहीं है।
वाह!एक शिक्षिका की पारिवारिक अवस्था का विवेचनात्मक मंथन व मजबूरियों का विश्लेषण.
जवाब देंहटाएंनिजी संस्थान चाहे वह विद्यालय हो, कोचिंग हो..
जवाब देंहटाएंवे शिक्षकों को पैसा देने के बदले उनका पूरा खून ही मानों चूस लेते हैं..।
हमारे देश में यह विचित्र विडंबना है कि सरकारी स्कूलों में पढ़ाने वाले शिक्षक जहाँँ मौज-मस्ती कर मोटी तनख़्वाह गटक जाते हैं, वहीं प्राइवेट स्कूलों में में पढ़ाने वाले अध्यापक विशेषकर शिक्षिकाएँ अवकाश के दिन में भी संस्था के कार्यों के बोझ तले अपनी खुशियों को क़ुर्बान करने पर विवश हैं
मेरे पिताजी भी एक निजी संस्थान में शिक्षक थे और आप स्वयं ऐसे ही किसी संस्थान में अध्यापिका हैं । सम्भवतः इस दर्द से आप भी गुजर रही होंगी.. ?
तभी इतना मार्मिक और यथार्थ चित्रण किया है।
आपकी लेखनी को नमन मीना दी।
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 26 फरवरी 2020 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
आदरणीय अयंगर सर, सादर आभार।
जवाब देंहटाएंआदरणीय शशिभाई, रचना अनुभव आधारित ही है। बहुत बहुत आभार विस्तृत टिप्पणी के लिए।
जवाब देंहटाएंआदरणीया पम्मीजी, तहेदिल से शुक्रिया आपका।
जवाब देंहटाएंवाह मीना जी स्वगत अनुभव भावों से मिलकर कितना शानदार सृजन बन जाता है ये आपकी ये प्रस्तुति साफ अनुभव करा रही है बहुत बहुत सुंदर लिखा आपने बहुत बहुत बधाई।
जवाब देंहटाएंबड़ी उहोपोह में दिन कैसे निकलते है पता नहीं चलता, अच्छे से समझती हूँ कामकाजी महिलाओं की परेशानी, पढ़कर लगा जैसे अपने लिए ही लिखा है यह सब
जवाब देंहटाएंसच में प्राइवेट स्कूलों में टीचर के ऊपर काम का इतना ज्यादा दबाव बढ रहा है कि वे अपने छात्रों पर भी ज्यादा ध्यान नहीं दे पा रहे हैंं.....अध्यापिकाएं तो घर और स्कूल के कामों में ऐसे उलझ रही हैं कि लगभग अवसाद की स्थिति में पहुंच रही हैं ।
जवाब देंहटाएंतीन दिन की छुट्टी तो और भी सजा बन गयी रिया के लिए
शानदार लेखन।
'समय सारिणी में सब कुछ है। सिर्फ रिया कहीं नहीं है।' सब कुछ बयान होवगया, बस एक पंक्ति में।
जवाब देंहटाएंभागदौड़ भरी इस दुनिया की बेहद उम्दा रचना....
जवाब देंहटाएंलिखती रहें। शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी पोस्ट,
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी पोस्ट
जवाब देंहटाएंबधाई
सुन्दर कृति - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंWah!!! Kitni sundar, aur kitni satya rachna.
जवाब देंहटाएंआप सभी का हृदय से आभार। इस ब्लॉग पर किसी की प्रतिक्रिया आने पर मुझे सूचना नहीं आती है इसलिए पता नहीं चला। आप सभी के स्नेह एवं समर्थन के लिए पुनः पुनः धन्यवाद। ब्लॉग को फॉलो करने के लिए भी बहुत बहुत शुक्रिया।
जवाब देंहटाएंहाय ! आधुनिक नारी तेरी वही कहानी ।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी पोस्ट
जवाब देंहटाएंबधाई
बहुत सुंदर कहानी, सब कुछ करते हुए भी रिया खुश तो है..
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कथा जिससे शिक्षण कार्य में लगे बहुत से लोग अपने आपको जोड़ सकते हैं । कहानी में दर्द की अंतर्धारा प्रवाहित हो रही है जिसे भुक्तभोगी भलीभांति अनुभव कर सकते हैं । उत्कृष्ट सृजन के लिए अभिनंदन आपका मीना जी ।
जवाब देंहटाएंनौकरीपेशा लोगों का दर्द उभर आया..
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर लेख..
सादर प्रणाम
रिया के माध्यम से नौकरीपेशा स्त्रियों की कठिनाइयों पर ध्यान आकर्षित किया है । सुंदर कहानी ।
जवाब देंहटाएंसुंदर लेख
जवाब देंहटाएंस्त्री जीवन के घर बाहर, रिश्ते नातों से जुड़े संघर्ष तथा अनुभूति को दर्शाती अनोखी कहानी..
जवाब देंहटाएंस्त्री जीवन के घर बाहर, रिश्ते नातों से जुड़े संघर्ष तथा अनुभूति को दर्शाती अनोखी कहानी..
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी पोस्ट |आपका हार्दिक आभार
जवाब देंहटाएंसबको निभानेवाले का यही हाल हो जाता है,अपने लये कुछ समय निकालना मुश्किल हो जाता है.
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (2-3-21) को "बहुत कठिन है राह" (चर्चा अंक-3993) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
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कामिनी सिन्हा
"समय सारिणी में सब कुछ है। सिर्फ रिया कहीं नहीं है।"
जवाब देंहटाएंघर-बाहर,रिश्ते-नातो को संभालती एक कामकाजी महिला का जीवन अमूमन ऐसा ही होता है। सबके लिए वक़्त होता है सिर्फ अपने लिए नहीं।
बहुत सुंदर कहानी,सादर नमन मीना जी
पारिवारिक व्यस्तताओं और सांसारिक जिम्मेदारियों के बीच झूलते जीवन पर सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंहृदयस्पर्शी रचना...
जवाब देंहटाएंहृदय स्पर्शी आलेख!
जवाब देंहटाएंस्त्री विमर्श पर सुंदर कथा...
जवाब देंहटाएंहार्दिक शुभकामनाएं 🙏
आप सभी का हृदय से आभार। इस ब्लॉग पर किसी की प्रतिक्रिया आने पर मुझे सूचना नहीं आती है इसलिए पता नहीं चला। यह रचना कामिनी बहन ने चर्चा मंच पर ली थी, इसका भी पता नहीं चला। आप सभी के स्नेह एवं समर्थन के लिए पुनः पुनः धन्यवाद। ब्लॉग को फॉलो करने के लिए भी बहुत बहुत शुक्रिया।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंवर्तमान की व्यस्तता दर्शाती हुई यथार्थ रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत वेहतरीन।