बुधवार, 31 जुलाई 2019

मंथन (भाग 1)

रचना एक प्राइवेट स्कूल में शिक्षिका है। नौवीं और दसवीं कक्षा के बच्चों को पढ़ाती है। बी.एस.सी. बी. एड. होने पर भी शादी के बाद पाँच वर्षों तक घरेलू जिम्मेदारियों के कारण नौकरी का इरादा नहीं किया। वृद्ध सास ससुर गाँव में रहते थे सो उनकी सेवा के लिए कभी महीने दो महीने गाँव चली जाती। पति की नौकरी पुणे में थी इसलिए कुछ समय बाद पुणे आना पड़ता। परिस्थितियाँ चलचित्र की कहानी की तरह तेजी से मोड़ लेती गईं। सास-ससुरजी स्वर्ग सिधार गए। रचना एक बेटे की माँ बन गई। इधर कुछ कारणवश रचना के पति की नौकरी चली गई। रचना ने नौकरी की तलाश की। जल्दी ही उसे एक प्राइवेट स्कूल में शिक्षिका की नौकरी मिल गई। तब तक उसका बेटा दीपक तीन वर्ष का हो चुका था. उसने अपने ही स्कूल में दीपक का दाखिला करा लिया ताकि साथ ले जाए और साथ ले आए। 

घरेलू परिस्थितियाँ ऐसी थी कि रचना के पति की नौकरी छूट चुकी थी। बिजनेस किया तो वहाँ भी घाटा ही हुआ। घर के पास ही एक दुकान किराए पर लेकर खोल ली, पर वह भी नहीं चली। 
उसमें भी कोई खास आमदनी नहीं हो रही थी ।

रचना शाम को घर पर ट्यूशन भी पढ़ा लेती थी । जिससे घर खर्च तो ठीक से चल जाता था । किंतु परिवार में अन्य खर्चे भी लगे रहते थे, जैसे लेन-देन, रिश्ते निभाना, शादी-ब्याह के न्यौते आदि के खर्चे। सारांशतः बचत तो शून्य ही थी।

ऐसे करते - करते दीपक ने सातवीं कक्षा पास कर ली। वह पढ़ाई में बहुत तेज था । उसके अंक कभी 90 प्रतिशत से कम नहीं आए। अपनी इकलौती संतान को लेकर रचना के मन में बहुत सपने थे। वह उसे इंजिनीयर बनाना चाहती थी। उसकी आगे की पढ़ाई में बहुत पैसा खर्च होगा, यह बात रचना के पति विजय के मन में भी बैठ गई थी। अतः उन्होंने कमजोर बिजनेस और दुकान को समेटकर फिर नौकरी की कोशिश शुरु कर दी। जल्दी ही उन्हें एक प्राइवेट कंपनी में एरिया सेल्स ऑफिसर की नौकरी मिल गई। काम के सिलसिले में तीन - तीन महीने घर से दूर रहना पड़ता था। तीन चार दिन के लिए लौटते और फिर वापस चले जाते टूर पर।

आठवीं कक्षा में दीपक तेरह वर्ष पार कर चुका था। इस उम्र में बच्चों में कई शारीरिक व मानसिक बदलाव आते हैं। उनको अब माता - पिता के संग - साथ की अधिक आवश्यकता होती है। दीपक को पिता का साथ व मार्गदर्शन बहुत ही कम मिल रहा था। वहीं रचना को एक कोचिंग सेंटर में पढ़ाने का प्रस्ताव मिला। वहाँ बढ़ोतरी की काफी संभावना थी। रचना ने दीपक से बात की तो दीपक ने एक समझदार बच्चे की तरह मम्मी की समस्या का हल  निकाल दिया । उसने वादा किया कि वह शाम को अकेले घर पर रह लेगा और कोई शरारत नहीं करेगा। रचना ने कोचिंग सेंटर जॉइन कर लिया। वह स्कूल से आने के बाद दीपक को थोड़ी देर खेलने देती थी। फिर खिला - पिला कर सुला देती और थर्मस में दूध रखकर, शाम का नाश्ता तैयार कर वह साढ़े तीन बजे कोचिंग सेंटर में पढ़ाने चली जाती। बाहर से ताला लगा जाती घर को। दीपक नींद पूरी करके उठता,ऩाश्ता करता, दूध पीता और स्कूल से मिला गृहकार्य पूरा करता। कभी ड्राईंग कर लेता तो कभी टी वी देख लेता था । शाम सात बजे रचना घर लौटती थी और दीपक को थोड़ी देर खेलने बाहर भेजती थी. खुद रात का खाना बनाकर और अन्य काम निपटाकर दीपक की पढ़ाई कराती। छःमाही परीक्षा तक सब सही चला। 
दीपावली की छुट्टियों के बाद जब दीपक फिर से स्कूल जाने लगा तब उसके व्यवहार में परिवर्तन दिखने लगा । स्कूल के शिक्षक रचना को आदर्श शिक्षिका मानते थे और उसकी बहुत इज्जत करते थे । रचना को बुलाकर दीपक की शिकायत देना उनके लिए भी तकलीफ वाला काम था, फिर भी उन्हे अपना कर्तव्य तो निभाना था । दीपक पढ़ाई में ध्यान नहीं दे रहा, आज कक्षा में सो गया, दूसरों को डिस्टर्ब करता है, आज टीचर को उल्टा जवाब दिया, बेवजह हँसते रहता है जैसी शिकायतें आने लगीं। रचना रोज उसे समझाती, कभी डाँटती और कभी कोसती भी कि तेरी वजह से स्कूल में मेरा नाम खराब हो रहा है।

उधर दीपक कहता - माँ आपने मुझे अपने स्कूल में क्यों  डाला ? क्या मैं अकेला ही शरारत करता हूँ?  और बच्चे भी तो करते हैं। पर टीचर्स मुझे ही ज्यादा डाँटते हैं क्योंकि मैं आपका बेटा हूँ ना ! अनीता टीचर सब बच्चों के सामने अपमान करती हैं। कहती है - “तू तो किसी भी एंगल से रचना टीचर का बेटा नहीं लगता, कहाँ माँ कहाँ बेटा!” फिर मैं उनको उल्टा जवाब क्यों न दूँ? 

अन्य बच्चों से तुलना होने पर दीपक के कलेजे पर छुरियाँ चल जाती और वह विद्रोही होता चता जा रहा था। अगले पीरियड में उस टीचर को तंग करने की नई योजना बनाता या फिर टीचर की हर बात पर  भावहीन, निर्विकार चेहरा बनाकर उसे जता देता कि बकती रहो मेरी बला से।

जैसे तैसे आठवीं का वर्ष पूरा हुआ। दीपक के 80 प्रतिशत अंक आए और कक्षा में पाँचवाँ स्थान। पहले दूसरे स्थान पर आने वाला बच्चा पिछड़ रहा था और इससे रचना मानसिक रूप से परेशान रहने लगी। उसने दीपक  से उम्मीदें भी तो बहुत ज्यादा लगा रखी थी ।
( क्रमश:)

5 टिप्‍पणियां:

  1. कहानी पढ़कर लगा जैसे अपने आस-पास ही घट रहा है यह सब
    मर्मस्पर्शी प्रस्तुति

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  2. बिल्कुल, लगता है कि एक आदर्श शिक्षिका के संघर्ष की कहानी है यह, हम पाठकों को इसके हर भाग की प्रतीक्षा रहेगी।
    सादर..

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  3. मीना दी, एक संघर्षमय नारी की जीवन यात्रा...

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  4. कमला जैसी बेटियों की अनगिन। कहानियां दफ़न हैं हवेलियों और किलों की चारदीवारी के भीतर। मार्मिक रचना जो मन को उद्वेलित कर गई।

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