सोमवार, 29 जुलाई 2019

कमला (भाग - 1)

क्षिप्रा की हरियाली घाटियों के बीच बसा हुआ था एक छोटा सा खूबसूरत गाँव – रुद्रपुर । गाँव के पास से बहती हुई क्षिप्रा अल्हड़ बालिका के समान उछलती कूदती नहीं थी बल्कि शांत – सुघड़ नवयौवना सी मंद-मंथर चाल से बहती जाती थी । इसी सुंदर सरिता तट पर दूर - दूर तक फैले हरे भरे खेत, उसके बाद आम की सघन अमराई और अमराई से लगकर था  ग्रामदेवी का सुंदर मंदिर।
यहीं से शुरू होती थी गाँव की सीमा। सीमा सें प्रवेश करते ही नजरों को बाँध लेती थी लाल पत्थरों की एक विशालकाय हवेली ! ठाकुर अजेयसिंह की वह हवेली गाँव की शान भी थी और ग्रामवासियों के आदर सम्मान का केंद्र भी । अजेयसिंह के दादा सुजेयसिंह ने बनवाई थी वह हवेली, जो अपने जमाने के बड़े रईस थे। समय के साथ जमींदारी गई। रईसी शौकों की वजह से खजाना खाली होने लगा लेकिन हवेली की आन - बान में कोई कमी नहीं आई। जमीन जायदाद अभी भी बहुत थी और गाँव में अजेयसिंह का सम्मान भी कम नहीं था।
विवाह के आठ वर्ष बाद अजेय की पत्नी तारा की गोद एक कन्या रत्न से भरी। इस संतान के लिए पति पत्नी ने बड़ी मन्नतें माँगी थीं, पूजा पाठ किए थे। बेटे की आस थी ताकि वंशवृद्धि हो किंतु इतने दिनों बाद संतान होने की खुशी भी कम ना थी। बेटी थी भी तो कितनी सुंदर. परीकथाओं की परियों सी ! केशर घुले दूध सा वर्ण, बड़ी - बड़ी गहरी काली आँखें, घनी पलकें, कमल नाल सा नाजुक शरीर ! कमल के फूल सी सुंदर, लक्ष्मी सी बिटिया का नाम रखा गया – कमला ।
किंतु विधाता को कुछ और ही मंजूर था। कमला के जन्म के छः महीने बाद ही तारा स्वर्ग सिधार गई। कमला को सँभालने की जिम्मेदारी आया उमादेवी को सौंपकर अजेयसिंह ज्यादातर घर से बाहर ही रहने लगे। काम में डूबे रहने से पत्नी के बिछोह का गम कुछ हद तक भूल जाते थे। इधर कमला अपने दुर्भाग्य से अनजान, हँसती किलकारी मारती, सारी हवेली में अपने नन्हे - नन्हे पैरों की पायल छनकाती, दौड़ने लगी। चंचलता के साथ - साथ स्वतंत्रता का गुण भी उसमें जन्मजात ही था। उसके मन के विरुद्ध कोई भी उससे कुछ भी नहीं करा सकता था। ना नहलाना, ना खिलाना। 
जबर्दस्त मनमौजी लड़की थी कमला ! अजेयसिंह थोड़ा बहुत समझाते और यह सोचकर छोड़ देते कि वक्त के साथ सीख जाएगी। आया उमादेवी परेशान होती। नियम, संस्कार, अनुशासन सिखाने का हर प्रयत्न विफल रहा था। कमला के ऐसे लक्षण देख कर अजेय ने उसे पढ़ाने-लिखाने का विचार स्थगित ही कर दिया था।
जैसे - तैसे कमला तेरह वर्ष की उम्र तक पहुँच गई। बात-बात पर ऐसा खिलखिला कर हँसती कि सूनी हवेली की दीवारें खनक उठतीं। आया उमादेवी उसे शांत संयमी बनने का पाठ पढ़ाती, मगर उद्दाम वेग से बहती नदी को बाँध सका है कोई?  हवेली की दीवारें उसे कैद ना रख पातीं और वह अकेली बाहर निकल जाती। चौकीदार से लेकर नौकरों और खेतों में काम करने वाले मजदूरों पर उसका रोब चलता था। दो वर्ष ऐसे ही बीते ।
आखिर उसका विवाह कर देना ही एकमात्र उपाय सूझा। नजदीक के गाँव से अच्छा घर-वर देखकर धूमधाम से कमला का ब्याह रचा दिया गया। दो महीने में ही कमला ने ससुराल वालों की नाक में दम कर दिया। वहाँ भी वही, बच्चों सा कूदना - फाँदना, जोर - जोर से खिलखिलाकर हँसना. जब मन आए नहाना,जब मन आए खाना। बारिश आई तो पति का हाथ पकड़कर फुहारों में भीगने के लिए ले  गई। वह बेचारा हाथ छुड़ाकर यूँ अंदर दौड़ा मानो सैकड़ों मधुमक्खियों ने डंक मार दिया हो और कमला अल्हड़ बालिका सी छत पर खड़ी बारिश में भीगने का मजा ले रही थी, उछल रही थी, तालियाँ पीट रही थी ! बालिका ही तो थी वह, आदर्श कुलवधू के गुण उसमें ना आने थे और ना आए। 
यह दृश्य देखकर सास ननद ने अपना सिर पीट लिया और अगले ही दिन बड़ी समझदारी से उसे मायके पहुँचा दिया, यह कहकर कि लड़की मतिमंद है। अजेयसिंह पर मानो बिजली गिर पड़ी। घंटों अपनी पत्नी तारा के चित्र के आगे बैठे आँसू बहाते रहे मानो पूछ रहे हों, कैसे सँभालूँ मैं तुम्हारी लाडली को ? बेटी से प्रेम भी बहुत था और मान मर्यादा की चिंता भी कम नहीं थी। 
ससुराल से लौटने पर भी कमला उतनी ही प्रसन्न थी, उतनी ही खिलंदड़ी ! गाँव में दबे स्वर में बातें होतीं। सामने कुछ कहने का साहस किसमें था ?  इन सबसे बेखबर कमला, खेतों से बगीचों तक, अमराई से क्षिप्रा त़ट तक भटकती रहती। पंछियों से, पेड़ों से, फूलों से, पत्थरों से बातें करती रहती। गाँव में अजेयसिंह का मान सम्मान और दबदबा इतना था कि अकेली स्वच्छंद सारे गाँव में भटकती कमला की ओर गलत नजरों से देखने की हिम्मत किसी में नहीं थी। 
समय बीतता गया। कमला सोलह वर्ष की हो गई। यौवन की दहलीज पर कदम रखते ही उसके व्यवहार में परिवर्तन आया। स्वच्छंद, बेलगाम और बेखौफ स्वभाव अब थोड़ा शांत, शालीन और अंतर्मुख होने लगा। इस बात से पिता अजेय और आया उमादेवी ने राहत की साँस ली।     
( क्रमशः ) 

8 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी कोई रचना सोमवार 28 जून 2021 को साझा की गई है ,
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    संगीता स्वरूप

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बहुत बहुत आभार आदरणीया संगीत दीदी। इस ब्लॉग से मुझे नोटिफिकेशन नहीं आते हैं। वो तो मैंने दोपहर में स्कूल से आकर पाँच लिंक देखा तब जाना।

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  2. रोचक कहानी…उत्सुकता है आगे पढ़ने की

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  3. बहुत सुन्दर रोचक कहानी।

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  4. पुराने ज़माने की महक है कहानी में.....आगे पढ़ने की बेसब्री है...

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