आज हम सबकी प्रिय गायिका सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर परमतत्त्व में विलीन हो गईं। लताजी के गाए हुए मेरे प्रिय गीतों में से एक, मराठी गीत का अपनी क्षमतानुसार हिंदी अनुवाद करने का मैंने प्रयत्न किया है। गीत के बोल और भावों के साथ संपूर्ण न्याय करते हुए लता दीदी ने इसे जब गाया तो अफवाह फैल गई कि इस गीत में लता दीदी ने अपने जीवन की संध्याकाल का और गायन कार्य से निवृत्ति लेने का संकेत दिया है। बाद में लता जी ने इस बात का खंडन किया। परंतु जब-जब इस गीत को सुनती हूँ, आँखें नम अवश्य हो जाती हैं।
मराठी के सुप्रसिद्ध कवि बालकृष्ण भगवंत बोरकर की यह कविता लताजी का स्वर पाकर अजर अमर हो गई है।
आप इस गीत को यहाँ सुन सकते हैं :
https://youtu.be/H4-TtMhOJyg
आता विसाव्याचे क्षण
माझे सोनियाचे मणी
सुखे ओविता ओविता
त्याची ओढतो स्मरणी
हर उतार-चढ़ाव, सुख-दुःख से गुजरकर, जीवन को भरपूर जीने के बाद जीवन की संध्याकाल में पहुँचकर मन विश्राम की इच्छा करता है। जीवन की भाग दौड़ के बाद अब विश्राम के क्षणों को जीने का, उनका आनंद लेने का समय है। सारी सुनहरी यादें, वे सारे सुनहरे क्षण सोने के मोती हो गए हैं। मधुर स्मृतियों के ये मोती मन की स्मरणी (सुमरनी) में पिरोकर उस सुमरनी को फेरने का यह भावविभोर करनेवाला समय है।
काय सांगावे नवल
दूर रानीची पाखरे
ओल्या अंगणी नाचता
होती माझीच नातरे
मैं विस्मय विमुग्ध हूँ। आनंद के क्षणों की झड़ी लग गई है। इस वर्षा से मेरे मन का आँगन गीला है। इस गीले नम आँगन में दूर किसी वन के पक्षियों का झुंड उतरा है। उन छोटे-छोटे पक्षियों का नृत्य मुझे अपने नन्हें नन्हें नाती-पोतों की याद दिलाता है। मानो दूर देश में रहनेवाले मेरे नाती-पोते मेरे आँगन में खेलने आ गए हैं।
कधी होती डोळे ओले
मन माणसाची तळी
माझे पैलातले हंस
डोल घेती त्याच्या जळी
जीवन यात्रा के गुजरे हुए पड़ावों को याद करते हुए कभी-कभी नयन भीग जाते हैं। मन जल से भरा सरोवर हो जाता है जिसके दूसरे तीर से कुछ राजहंस जल में उतरते हैं और इस मनरूपी ताल (सरोवर) में क्रीड़ाएँ करने लगते हैं।
कशी पांगल्या प्रेयसी
जुन्या विझवून चुली
आश्वासती येत्या जन्मी
होऊ तुमच्याच मुली
पुराने जीर्ण चूल्हों को बुझाकर मेरे प्रियजन अपने अपने स्थान लौटने लगे हैं। (इस जन्म में साथ रहनेवाले, मिलनेवाले, बिछड़ने लगे हैं।) उनका साथ बहुत प्यारा रहा। जाते-जाते वे आश्वासन देते जा रहे हैं कि अगले जन्म में तुम्हारी बेटियाँ बनकर आएँगे। (अगले जन्म में किसी ना किसी रूप में फिर मिलने का आश्वासन देकर साथी जा रहे हैं।)
मणी ओढता ओढता
होती त्याचीच आसवे
दूर असाल तिथे हो
नांदतो मी तुम्हांसवें
यादों की सुमरनी के मनके फेरते-फेरते ना जाने कब वे अश्रुओं में परिवर्तित हो जाते हैं, पता ही नहीं चलता। (मन कल्पना करने लगता है कि एक दिन तुम सब भी मुझसे दूर हो जाओगे)। तुम दूर भी रहो तो दुःखी मत होना, मैं वहाँ भी हमेशा तुम्हारे साथ ही हूँ।
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